कोरबा/चैतमा:- प्रदेश की साय सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक संबल देने और उनकी उपज को उचित मूल्य दिलाने के लिए समर्थन मूल्य व रकबा में बढ़ोतरी कर धान की खरीदी तो की जा रही है, लेकिन धान खरीदी के लिए संचालित केंद्रों की रखरखाव ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जिले के चैतमा स्थित उपार्जन केंद्र पर भी प्रशासनिक अनदेखी के फलस्वरूप अव्यवस्थाओं का बोलबाला है, जिससे किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
धान खरीदी केंद्र चैतमा के अधीन वर्तमान 16 ग्राम आते है। जहां 1305 किसानों की पंजीकृत संख्या तथा कुल रकबा 1997.789 हेक्टेयर में है। इस खरीदी केंद्र में किसानों को धान रखने के लिए जगह कम पड़ रही है। क्योंकि धान उठाव की रफ्तार धीमी होने से बड़ी मात्रा में धान जमा है। इससे उपार्जन केंद्र में स्थान की कमी होने से किसानों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है तथा केंद्र के बाहर अन्न दाताओं की भीड़ और धान लदे वाहनों की कतार नजर आने लगी है। इस अव्यवस्था से प्रबंधक भी परेशान है। वहीं ऐसे में बदलते मौसम के कारण किसानों को नुकसान की संभावना से भी नकारा नही जा सकता। अनुमानित हजारों क्विंटल धान यहां स्टॉक में रखी हुई है। जिससे पूरा प्रांगण भर गया है। इससे अन्य किसानों से धान खरीदी करने में केंद्र संचालक को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो किसान अपने धान लदे वाहनों के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। यदि मौसम का मिजाज अचानक बदलता है तो किसानों के खून- पसीने की मेहनत को बर्बाद होने में देर नही लगेगी, जबकि धान खरीदी केंद्र पर रखी धान को समय से उठाव करवा कर केन्द्र से मिल तक पहुँचाया जाना जरूरी है, जिसको लेकर विभाग भी गंभीर नही है। चैतमा में 10 से 12 किलोमीटर की दूरी तय कर धान बेचने आए कई किसानों ने बताया कि ग्राम डोड़की में नए धान उपार्जन केंद्र खोले जाने हेतु धान खरीदी के पूर्व जिला प्रशासन को प्रस्ताव/आवेदन दिया गया था, किन्तु प्रशासनिक अनदेखी के कारण ही आज यह स्थिति निर्मित हुई है कि उन्हें धान बेचने के लिए लंबी दूरी तय करना पड़ रहा है, जिससे उन्हें वाहन का अतिरिक्त भाड़े के साथ उपार्जन केंद्र में अव्यवस्था का मार झेलना पड़ रहा है। किसानों ने आगे बताया कि ग्राम डोड़की में धान खरीदी केंद्र के खुलने से मदनपुर, नावापारा, पटपरा, नानबाँका, बड़ेबाँका, सगुना सहित आश्रित भेलवाटिकरा, ठाड़पखना के किसानों को धान बेचने में कोई परेशानी नही होती, लेकिन इस ओर जिला प्रशासन की अनदेखी के कारण उन्हें धान बेचने चैतमा का रुख करना पड़ता है। बड़े किसान तो किसी साधन से अपनी धान वहां तक ले जा सकते है, किन्तु छोटे किसानों पर तो धान कटाई, मिंजाई के बीच दोहरी मेहनत का बोझ आ गया है। ऐसे में छोटे किसान बिचौलियों के पास औने- पौने दाम पर अपना धान बेचने को मजबूर है। ऐसे में धान खरीदी केंद्रों की बेहतर तस्वीरे पेश करने को लेकर सरकारी प्रयासों पर सवाल खड़े होता है, इसलिए कि कई केंद्र में जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। सरकार और जिला प्रशासन ऐसे अव्यवस्थाओं पर जल्द सुधार लाने में कारगार कदम उठाए ताकि अन्नदाताओं का अन्न खरीदी के तमाम व्यवस्थाओं के साथ समय पर और सही उचित मूल्य उन्हें मिल सके।
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