Mahasamund/छत्तीसगढ़ में धान खरीदी व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सरकारी दावों, घोषणाओं और किसान–हितैषी नीतियों के बीच एक किसान की टूटती सांसें पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर रही हैं। ग्राम पंचायत बोडरीदादर, सेनभांठा, विकासखंड बागबाहरा निवासी किसान मनबोध गाड़ा प्रशासनिक अव्यवस्था और सहकारिता तंत्र की बेरुख़ी का ऐसा शिकार बना कि उसने आत्महत्या करने का प्रयास कर लिया।
मामला खेमडा धान समिति केंद्र, सहकारिता बैंक मुंगासेर से जुड़ा है, जहाँ किसान महीनों की मेहनत के बाद अपना धान बेचने पहुँचा था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। टोकन नहीं कटने के कारण किसान को बार-बार समिति के चक्कर काटने पड़े। कभी सर्वर की समस्या, कभी समय समाप्त होने का बहाना, तो कभी “कल आइए” की बेरुख़ी—हर दिन किसान की उम्मीदें टूटती रहीं।
धान तैयार, कर्ज सिर पर, मगर सिस्टम बंद दरवाज़ा बन गया!
बताया जा रहा है कि पीड़ित किसान मनबोध गंड़ा ने साहूकार और बैंक से कर्ज लेकर फसल तैयार की थी। धान कटाई के बाद उसे उम्मीद थी कि समिति में विक्रय कर वह कर्ज चुकाएगा और परिवार की जरूरतें पूरी करेगा। लेकिन टोकन नहीं कट पाने के कारण उसका धान घर में ही रखा रहा और आर्थिक संकट गहराता चला गया।
ग्रामीणों के अनुसार, किसान कई बार समिति प्रभारी और कर्मचारियों से गुहार लगा चुका था। मगर हर बार निराशा ही हाथ लगी। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ती चली गई।
असहाय किसान ने उठाया खौफनाक कदम!
घटना के दिन किसान एक बार फिर समिति गया था, लेकिन वहां भी वही जवाब मिला—“आज टोकन नहीं कटेगा।” टूटे मन से घर लौटते वक्त किसान की पीड़ा गुस्से और हताशा में बदल गई। इसी मानसिक स्थिति में उसने ब्लेड से अपना गला काट लिया।
खून से लथपथ किसान को देख आसपास के लोगों में हड़कंप मच गया। ग्रामीणों ने तत्काल 112 आपातकालीन सेवा को सूचना दी। पुलिस और स्वास्थ्य अमला मौके पर पहुँचा और गंभीर रूप से घायल किसान को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बागबाहरा ले जाया गया।
स्थिति नाजुक, डॉक्टरों की निगरानी में किसान!
चिकित्सकों के अनुसार, किसान के गले पर गहरा घाव है और अत्यधिक रक्तस्राव हुआ है। उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है। प्राथमिक उपचार के बाद उसे उच्च चिकित्सा केंद्र रेफर करने की तैयारी की जा रही है। किसान के परिजन सदमे में हैं और पूरे गांव में शोक व आक्रोश का माहौल है।
ग्रामीणों का फूटा गुस्सा—“कागजों में किसान हितैषी, ज़मीन पर किसान बेबस”!
घटना के बाद ग्रामीणों और किसान संगठनों में भारी रोष है। लोगों का कहना है कि सरकार हर मंच से किसानों की आय बढ़ाने की बात करती है, लेकिन जमीनी सच्चाई बिल्कुल उलट है।
ग्रामीणों ने सवाल उठाए—
अगर धान खरीदी व्यवस्था सही है, तो किसान टोकन के लिए क्यों भटक रहा है?
क्या समिति और सहकारिता बैंक की जवाबदेही तय होगी?
क्या मानसिक रूप से टूट चुके किसान की जिम्मेदारी किसी अधिकारी की नहीं बनती?
प्रशासन और सहकारिता विभाग पर उठे सवाल!
इस घटना ने सहकारिता विभाग, समिति प्रबंधन और प्रशासनिक अमले की भूमिका पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। टोकन प्रणाली को किसानों की सुविधा के लिए बनाया गया था, लेकिन वही प्रणाली अब किसानों के लिए काल बनती नजर आ रही है।
स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि—
दोषी समिति कर्मचारियों पर तत्काल कार्रवाई हो!
पीड़ित किसान के परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए!
टोकन प्रक्रिया को तुरंत सरल और पारदर्शी बनाया जाए!
एक किसान नहीं, पूरे सिस्टम का घाव!
मनबोध गंड़ा की यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस सिस्टम की विफलता की कहानी है, जो किसानों को समय पर उनका हक देने में नाकाम साबित हो रहा है। अगर समय रहते व्यवस्था नहीं सुधरी, तो ऐसे हादसे बार-बार सवाल बनकर उभरते रहेंगे।
आज एक किसान अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से जूझ रहा है, और पूरा प्रशासन जवाब ढूंढ रहा है—क्या टोकन से बड़ी किसी किसान की ज़िंदगी नहीं?


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