*जशपुर का 'अजूबा' पत्थलगांव जनपद : जहाँ निजी गाड़ी के टायर भी सरकारी 'मलाई' से बदलते हैं और गाड़ियाँ कागजों पर मैराथन दौड़ती हैं!...*

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*जशपुर।* अगर आपको यह सीखना है कि सरकारी खजाने को बिना डकार लिए कैसे हजम किया जाता है, तो जशपुर जिले की पत्थलगांव जनपद पंचायत से बेहतर कोई 'प्रशिक्षण केंद्र' नहीं हो सकता। यहाँ तैनात रहे तत्कालीन साहेब और बाबुओं की जुगलबंदी ने भ्रष्टाचार का ऐसा 'वाटरप्रूफ' मॉडल तैयार किया है, जिस पर नियमों की कोई भी बौछार बेअसर है।


*साहब की गाड़ी, जनता का पैसा : टायर तक का 'जुगाड़' सरकारी! -*पत्थलगांव जनपद के साहबों का रुतबा तो देखिए, गाड़ियाँ उनकी निजी हैं लेकिन उनका नखरा सरकारी खजाना उठाता है। 'राज टायर्स' का एक बिल (दिनांक 24/05/2023) गवाही दे रहा है कि साहब की गाड़ी (CG 30 D 9997) के लिए 43,800 रुपये के चमचमाते 'अपोलो टायर' जनपद निधि से खरीदे गए।  


* *व्यंग्य का तीर :* शायद साहब को लगता है कि वे विकास की राह पर इतनी तेजी से दौड़ रहे हैं कि टायर घिसना लाजिमी है, तो क्यों न बिल जनता के नाम फाड़ा जाए?  


*डीजल का 'जादुई' खेल : एक दिन में हजारों का तेल सफाचट! -* यहाँ का डीजल घोटाला किसी जादुई शो से कम नहीं है। जून 2023 के आकस्मिक व्यय बिलों पर नजर डालें, तो 'यादव फ्यूल्स' के नाम पर 80,365 रुपये का भुगतान एक झटके में कर दिया गया। बिलों की तारीखें और क्रम (जैसे 02/05/2023 को बिल नंबर 491, 492, 493) चीख-चीख कर कह रहे हैं कि यहाँ गाड़ियाँ सड़क पर कम और बिल बुक में ज्यादा दौड़ रही थीं।  


* *कागजी दौड़ :* बिना किसी लॉगबुक या दौरे के विवरण के, बस 'पास फॉर पेमेंट' की मुहर लगाओ और खजाना खाली कर दो।  


* *अदृश्य वाहन :* बिना किसी ट्रेवल एजेंसी के, राजकुमार एक्का जैसे व्यक्तियों को प्रतिमाह 46,500 रुपये का वाहन किराया ऐसे बांटा जा रहा है जैसे कोई खैरात बंट रही हो।  


*'नवरतन' बाबू का तिलिस्म और साहबों की 'टोली' :*पत्थलगांव जनपद में साहब आते-जाते रहते हैं - चाहे वे टी.डी. मरकाम हों, पवन पटेल हों, वी.के. राठौर हों या प्रियंका गुप्ता - लेकिन सिस्टम का रिमोट कंट्रोल 'सोमारू बाबू' जैसे किरदारों के पास ही रहता है। इन बाबुओं ने साहबों को भ्रष्टाचार की ऐसी 'चुटकी' चटाई है कि नियम-कायदे सब धरे के धरे रह गए।  


* *कुर्सी से प्यार :* सालों से जमे ये बाबू तबादलों को ऐसे चकमा देते हैं जैसे कोई अनुभवी खिलाड़ी।  

* *सत्यापन का तमाशा :* बिलों पर 'प्रमाणित किया जाता है कि भुगतान उचित है' लिखकर साहब ऐसे मुस्कुराते हैं जैसे उन्होंने जिले में गंगा बहा दी हो।  


*भंडार क्रय नियम? वो तो रद्दी की टोकरी में है!...*लाखों की स्टेशनरी और सामग्री खरीदी गई, लेकिन न कोटेशन का पता है और न टेंडर का। 5 लाख से अधिक की खरीदी 'शॉर्टकट' से निपटा दी गई।


* सीधा कमीशन: अपने चहेते सप्लायरों को बिना किसी प्रतियोगिता के काम देना और सीधे कमीशन डकारना यहाँ का 'स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर' (SOP) बन चुका है।  


*मुख्यमंत्री का जिला और साहेब मस्त :*हैरानी की बात यह है कि यह सब मुख्यमंत्री के अपने गृह जिले जशपुर में हो रहा है। प्रशासन 'धृतराष्ट्र' बना बैठा है और साहब 'फर्जी बिलों' की ढाल बनाकर सरकारी धन की होली खेल रहे हैं।


*जनता का सवाल :* क्या इन अधिकारियों से टायर और डीजल के पैसों की 'सर्जिकल रिकवरी' होगी? या फिर जांच की फाइल को भी 'सोमारू बाबू' अपनी दराज में बंद कर देंगे?

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