एमसीबी/छत्तीसगढ़।विश्व मानव अधिकार दिवस के अवसर पर 10 दिसंबर को मानव गरिमा, समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों की प्रासंगिकता एक बार फिर सामने आई है। राज्य में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं निगरानी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहा छत्तीसगढ़ मानव अधिकार आयोग पीड़ितों को न्याय दिलाने के साथ-साथ जन-जागरूकता फैलाने में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
छत्तीसगढ़ मानव अधिकार आयोग की स्थापना 16 अप्रैल 2001 को की गई थी। आयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों की सुनवाई करता है, सुधारात्मक सुझाव देता है तथा आवश्यकता पड़ने पर समाचार पत्रों, सोशल मीडिया एवं अन्य विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर स्वतः संज्ञान लेकर मामले की जांच करता है। आयोग का उद्देश्य मानव अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ शासन-प्रशासन को संवेदनशील बनाना भी है।
शिक्षाविद डॉ. विनोद पांडेय के अनुसार मानव अधिकारों की कानूनी अवधारणा का इतिहास लगभग 800 वर्ष पुराना है। इसकी शुरुआत वर्ष 1215 में इंग्लैंड के मैग्नाकार्टा से हुई। इसके बाद अधिकारों का अधिनियम 1688, अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा 1776, फ्रांस में मनुष्य के अधिकारों की घोषणा 1789, लीग ऑफ नेशंस की स्थापना 1920 तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 1945 में मानव अधिकारों को वैश्विक पहचान मिली। अंततः 10 दिसंबर 1948 को विश्व मानव अधिकार घोषणा को स्वीकार किया गया, जिसमें 30 धाराओं के माध्यम से मानव की सर्वोच्चता और सुरक्षा सुनिश्चित की गई।
डॉ. पांडेय यह भी बताते हैं कि भारत का 5000 वर्षों पुराना सांस्कृतिक इतिहास सहिष्णुता, अहिंसा, समानता, मानव सम्मान और मानव गरिमा जैसे मूल्यों पर आधारित रहा है। भारतीय परंपराओं में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तत्वों का सह-अस्तित्व देखने को मिलता है, जिसने हमारी सांस्कृतिक विरासत को बहुआयामी स्वरूप प्रदान किया है। मानव अधिकारों की चर्चा करते समय यह समझना आवश्यक है कि ‘मानव’ शब्द को केवल कानूनी या संवैधानिक दायरे में सीमित नहीं किया जा सकता। किसी भी प्रकार की पीड़ा पहुँचाना मानव अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
स्वतंत्र भारत में दिसंबर 1993 में कानून द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया। इसमें सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। आयोग स्वयं दंड देने का अधिकार नहीं रखता, लेकिन मानव अधिकार उल्लंघन के मामलों में स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कर अपनी सिफारिशें सरकार को प्रस्तुत करता है।
मानव अधिकारों को व्यवहार में प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कानून में आवश्यक संशोधन, सरकारी संगठनों का सहयोग, स्कूल स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक मानव अधिकार शिक्षा, नागरिकों में जागरूकता और न्यायपालिका की प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। मानव अधिकारों को केवल कानूनी विषय ना मानकर लोक कल्याण की भावना से जोड़ना ही समय की मांग है।

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