छत्तीसगढ़ के टेबलेट कांड का बड़ा धमाका: स्टोररूम में सड़ रहे करोड़ों के टैबलेट, चोरी का खेल उजागर… अधिकारी चुप क्यों?
Raipur/छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग में एक बार फिर सनसनी फैल गई है। NHM हो या DHS—पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार की जिस बदबू ने पूरे सिस्टम को जकड़ रखा था, अब वह बदबू पूरी तरह सड़ांध में बदल चुकी है। करोड़ों के मूल्य वाले करीब 500 टेबलेट, जो संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं, छत्तीसगढ़ को 03 वर्ष पहले वितरित किए गए थे, वह आज भी स्टोर शाखा के कमरे में धूल खा रहे हैं, खराब हो रहे हैं और अब तो चोरी भी होने लगे हैं। सवाल यह नहीं कि चोरी कौन कर रहा है… सवाल यह है कि सिस्टम अभी तक चुप क्यों है?
DHS का स्टोर रूम बना कबाड़खाना, सरकार के टैबलेट बने गिद्धों का शिकार!
स्वास्थ्य विभाग को दिए गए लगभग 500 टेबलेट उन अधिकारियों को उपलब्ध कराने थे जिन्हें फील्ड वर्क में इनकी जरूरत थी। पर हकीकत यह है कि लक्ष्मीकांत तिवारी के प्रभार वाले स्टोर रूम में ये टेबलेट 03 वर्षों से स्टोर रूम में पड़े-पड़े खराब हो रहे हैं। करोड़ों का सरकारी सामान, जिस पर जनता का पैसा लगा, वह न तो इस्तेमाल हुआ, न ही किसी को बांटा गया, बल्कि अब विभागीय कर्मचारियों द्वारा चोरी होने लगा।सूत्र बताते हैं, चोरी करने वाले कोई बाहर के लोग नहीं, बल्कि विभाग के ही कर्मचारी हैं!
सुरक्षा की पोल तब खुली जब CCTV फुटेज में आशित बेक नामक कर्मचारी टैबलेट ले जाते हुए पकड़ा गया। इस मामले में लक्ष्मीकांत तिवारी (स्टोर इंचार्ज),खोमन ध्रुव (ड्राइवर) और पवन (इलेक्ट्रिशियन)। हालांकि इन दोनों की पुष्टि अभी नहीं हुई है, पर संदेह गहरा है कि चोरी कोई एक दिन की नहीं, बल्कि लंबे समय से जारी खेल है।कुछ कर्मचारियों ने बताया कि चोरी के अन्य वीडियो भी मौजूद हैं, लेकिन उन्हें दबाया जा रहा है।
लक्ष्मीकांत तिवारी की भूमिका संदिग्ध – ‘चौकीदार ही चोर!’
लक्ष्मीकांत तिवारी कई वर्षों से स्टोर इंचार्ज हैं। सवाल यह उठता है—
क्या इतनी बड़ी चोरी बिना उनकी जानकारी के संभव है?
03 वर्षों तक लगभग 500 टेबलेट्स स्टोर में खराब होते रहे, किसी को पता नहीं?
क्या इसी इंतजार में थे कि धीरे-धीरे माल गायब किया जा सके?
लोगों का कहना है—
“जिस थाली में खाते हैं, उसी थाली में छेद कर रहे हैं!”
अगर स्टोर का खुद का इंचार्ज ही चोरी में मिला हुआ हो तो फिर सुरक्षा की उम्मीद किससे?
पत्रकार की पड़ताल से बौखलाया सिस्टम? संचालक ने मिलने से किया इंकार!
जब इस पूरे मामले में संचालक स्वास्थ्य सेवाएं संजीव कुमार झा का पक्ष जानने के लिए पत्रकार उनके कार्यालय पहुंचे, तो वहां जो हुआ उसने पूरे मामले को और भी संदिग्ध बना दिया।
पत्रकार को पूरा एक घंटा बाहर बैठाया गया, और जब उनके निजी सचिव अमित साहू से पूछा गया कि संचालक से मिलना है, तो साफ कह दिया गया—
“साहब अभी नहीं मिल सकते।”
क्या यह वही संजीव झा हैं जो पहले कोरबा कलेक्टर थे?
क्या वहां भी पत्रकारों को ऐसे ही अनदेखा किया जाता था?
किस आधार पर एक सरकारी अधिकारी, जो जनता के पैसे से तनख्वाह लेता है, पत्रकार से मिलने से इनकार कर सकता है?
और ऊपर से, दरवाजे पर खड़ा निजी सहायक यह तय करे कि कौन मिले और कौन नहीं?
ऐसा लगता है जैसे संजीव झा का दफ़्तर एक सरकारी कार्यालय नहीं, बल्कि कोई किला बन गया है, जिसमें जाने के लिए अनुमति पत्र दिखाना पड़ता है।
क्या संचालक मामले को दबा रहे हैं?
अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं!
सबसे बड़ा सवाल—टेबलेट चोरी का मामला सामने आए हफ्तों हो गए, फिर भी संचालक की तरफ से कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
क्या वे मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या दोषियों को बचाने में कोई राजनीतिक दबाव है?
क्या इसलिए पत्रकारों को दूर रखा जा रहा है?
सूत्रों का दावा है कि अमित साहू, जो संचालक के निजी सहायक बने बैठे हैं, उन्होंने यह पद फर्जी तरीके से हासिल किया है।उन्हें यह अधिकार ही नहीं कि वह किसी को रोकें या मिलने से मना करें।सबसे हैरानी की बात—
अमित साहू, लक्ष्मीकांत तिवारी के बेहद करीबी बताए जाते हैं।
अब यह संयोग है या खेल?
लोग पूछ रहे हैं—
क्या अमित साहू टेबलेट चोरी मामले को दबा रहे हैं?
क्या इसलिए संचालक जांच नहीं करवा रहे?
अगर कर्मचारी चोरी करते पकड़ाए, वीडियो मौजूद हो, फिर भी कार्रवाई न हो—तो इसका मतलब साफ है कि ऊपर तक खेल चल रहा है।
जनता का पैसा, जनता को जवाब चाहिए!
करोड़ों की टैबलेट खरीद, फिर उन्हें बांटने में लापरवाही, तीन साल तक उन्हें लॉक कर रखना, और अब उनकी चोरी—यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि जनता के पैसे की खुली लूट है।
स्वास्थ्य विभाग पहले से ही विवादों में घिरा है—NHM से लेकर DHS तक, हर जगह घपलों की कहानियां।
अब सवाल यह नहीं कि टैबलेट चोरी हुआ या नहीं…
सवाल यह है कि कार्रवाई कौन रोके बैठा है?
छत्तीसगढ़ का टेबलेट कांड अब साधारण मामला नहीं रहा।
यह सवाल है—
•व्यवस्था का,
•जवाबदेही का,
•और जनता के हक का,
अगर संचालक और उनके स्टाफ मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं तो यह सिर्फ विभाग की नहीं, बल्कि पूरे शासन की साख पर सवाल है।
जनता पूछ रही है—
टेबलेट चोरी हुआ, वीडियो सामने आया…
फिर कार्रवाई कब?
और चुप्पी क्यों?
जब तक इसका जवाब नहीं मिलता,
छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग संदेह के घेरे में ही रहेगा।
हम अगले अंक में गौरेला पेंड्रा मरवाही मामले की 115 पेजों की जांच की फाईल धर्मेंद्र गंवाई डिप्टी डायरेक्टर संचालनालय द्वारा दबा कर रखी गई है उस मामले को भी प्रमुखता से उजागर किया जायेगा!
और जिला महासमुंद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय को आवंटित 4- 4 बोलेरो शासकीय गाड़ियों के मामले का मामला उजागर किया जायेगा।

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