रसूख की भेंट चढ़ती इंसानियत! सरगुजा में 4 दिव्यांगों समेत 12 सदस्यों ने मांगी 'इच्छा मृत्यु'...

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सरगुजा। जिले से एक ऐसी हृदयविदारक खबर सामने आई है, जिसने लोकतंत्र के 'कल्याणकारी राज्य' होने के दावों पर सवालिया निशान लगा दिया है। ग्राम बटईकेला का एक गरीब परिवार, जिसमें 4 सदस्य पूरी तरह दिव्यांग हैं, आज न्याय की भीख मांगते-मांगते थककर महामहिम राष्ट्रपति से 'मौत' की इजाजत मांग रहा है।


70 साल का पसीना... और एक झटके में बेदखली का फरमान! - मामला ग्राम बटईकेला तहसील- बतौली अंतर्गत खसरा नंबर 1784 का है। केवला बाई का परिवार पिछले 70 वर्षों से इस बंजर जमीन को अपने खून-पसीने से सींचकर खेती योग्य बनाया और इसे ही अपनी आजीविका का आधार बनाया। लेकिन आज, उसी जमीन पर प्रशासन 'आंगनबाड़ी' बनाने के नाम पर बुलडोजर चलाने को तैयार है। सवाल यह उठता है कि क्या पूरे गांव में सरकार को आंगनबाड़ी के लिए केवल वही जमीन मिली, जिससे एक गरीब परिवार का पेट पलता है?


रसूखदारों का 'खूनी' खेल : रसूख अपना, जमीन गरीब की! - पीड़ित परिवार ने सीधे तौर पर स्थानीय सत्ता और अधिकारियों के बीच सांठगांठ का आरोप लगाया है। खबर के अनुसार :


* निजी स्वार्थ : आरोप है कि गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गीता देवी, अपने रसूख का इस्तेमाल कर केवल अपनी सुविधा के लिए अपने निवास के पास आंगनबाड़ी बनवाना चाहती हैं।

* दोहरा मापदंड : सबसे बड़ा धमाका यह है कि उसी खसरा नंबर 1784 की शासकीय भूमि पर गांव के प्रभावशाली व्यक्ति वीरेंद्र गुप्ता ने आलीशान पक्का मकान बना रखा है। प्रशासन की हिम्मत उस पक्के अतिक्रमण को छूने की नहीं हुई, लेकिन गरीब के चूल्हे को उजाड़ने के लिए पूरी मशीनरी सक्रिय हो गई।

* नियमों की धज्जियां : ग्राम सभा की अनुमति और बिना किसी पूर्व सूचना के जबरन निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया, जो सीधे तौर पर असंवैधानिक है।


दिव्यांगों की लाठी छीनेगी सरकार? - इस परिवार की स्थिति देखकर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की रूह कांप जाए। परिवार के 12 सदस्यों में से :


* ​राहुल चौहान (18 वर्ष) - दृष्टिहीन

* ​प्रिंसी चौहान (16 वर्ष) - दृष्टिहीन

* ​शांति चौहान - शारीरिक रूप से विकलांग

* ​फिरन सिंह - मानसिक रूप से अस्वस्थ


इन दिव्यांग बच्चों के सिर से छत और हाथ से रोटी छीनने की तैयारी कर रहे प्रशासन के पास क्या कोई वैकल्पिक योजना नहीं है? परिवार का स्पष्ट कहना है- "अगर जमीन छिन गई, तो हम भूखे मर जाएंगे। घुट-घुट कर मरने से अच्छा है कि राष्ट्रपति हमें सम्मान के साथ मरने की अनुमति दें।"


सत्ता के गलियारों में गूंज, पर क्या होगा समाधान? - पीड़ित परिवार ने अपनी गुहार की प्रतियां प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भेज दी हैं। यह मामला अब केवल एक जमीन का विवाद नहीं रह गया है, बल्कि यह भ्रष्टाचार और गरीब विरोधी मानसिकता के खिलाफ एक बड़ी जंग बन चुका है।...


बड़ा सवाल : क्या मुख्यमंत्री और स्थानीय प्रशासन इस परिवार के आंसू पोंछेंगे? या फिर विकास की इस अंधी दौड़ में इन दिव्यांगों की चीखें दबकर रह जाएंगी?...

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