फिल्म रिव्यू: धनेश के आराधना
रिपोर्टर राकेश कुमार साहू जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़ राज्य।
महान छत्तीसगढ़ी पारिवारिक फिल्म धनेश की आराधना फिल्म का पब्लिक रिस्पांस काफी अच्छा है जो निम्नानुसार है यह हमारे छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री की एक अच्छी मिसाल के रूप में आज 25 साल छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री एवं छत्तीसगढ़ राज्य की रजत जयंती के पावन अवसर पर इस तरह की फिल्म का प्रदर्शित होना काफी अच्छा है और यह राज वर्मा एवं प्रणव झा द्वारा निर्मित फिल्म को दर्शकों का अपार प्रेम और राजस्व की भी प्राप्ति हो रही है।
रेटिंग 4/5
प्रणव झा द्वारा निर्देशित छत्तीसगढ़ी फिल्म 'धनेश के आराधना' अपने टाइटल को पूरी तरह न्याय देती है। यह एक सरल, दिल छूने वाली लव स्टोरी है, जिसमें आराधना एक स्कूल छात्रा की भूमिका में है और धनेश उसी स्कूल का बस ड्राइवर। धनेश पहली नजर में ही आराधना पर फिदा हो जाता है, जबकि आराधना उसके सादगी भरे व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसे दिल दे बैठती है। हालांकि धनेश की इच्छा है कि प्रेमिका जब 18 साल की हो जाए तब वो उसे प्रपोज करे। फिल्म में इस बात पर बार बार जोर दिया गया है कि 18 साल से पहले प्यार पर नियंत्रण रखा जाए ताकि नैतिक और कानूनी परिपक्वता आ जाए।
फिल्म के प्रमुख किरदारों में कलेक्टर की भूमिका में काका, उनका ड्राइवर सेवक और नशे की आदी पूनम (जो धनेश पर एकतरफा प्यार करती है) शामिल हैं। ये किरदार कहानी में ह्यूमर और इमोशन्स का तड़का लगाते हैं।
निर्देशन/ स्क्रीन प्ले
धनेश और आराधना की प्रेम कहानी भावनाओं, जिज्ञासा और हल्के-फुल्के हास्य के साथ आगे बढ़ती है। विष्णु कोठारी के लिखे रोमांटिक गीत, दादा साहू, पप्पू चंद्राकर और काका की कॉमेडी फिल्म को गति प्रदान करती है। स्क्रीनप्ले चुस्त-दुरुस्त है, जो फिल्म की रफ्तार को बनाए रखता है। प्रणव झा का निर्देशन मजबूत और संतुलित है। संवाद सीधे दिल से जुड़ते हैं, खासकर कॉमेडी वाले पंच। रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े डायलॉग्स जैसे कलेक्टर काका का 'अतेक बड़ कलेक्टर होए के बाद घर के डौकी मन चमका देथे' दर्शकों को खूब गुदगुदाते हैं।
गीत-संगीत, सिनेमेटोग्राफी और तकनीकी पक्ष
गीत-संगीत फिल्म की जान हैं। विष्णु कोठारी के भावपूर्ण गीतों को श्याम हाजरा, तरुण गढ़पाले और खुद प्रणव झा ने संगीत दिया है, जो स्क्रीन पर बेहतरीन तरीके से फिट बैठते हैं। राज ठाकुर की सिनेमेटोग्राफी में फ्रेमिंग और लाइटिंग का शानदार समन्वय है। मात्र 19 साल के एडिटर श्रेष्ठ वर्मा ने कसी हुई एडिटिंग की है, जिसमें कोई ढीलापन नहीं। बैकग्राउंड म्यूजिक (बीजीएम) हर सीन के मूड से पूरी तरह मेल खाता है।
अभिनय
निर्देशक ने ज्यादातर कलाकारों को उनके यूट्यूब इमेज के करीब ही पेश किया है, जिससे सभी का अभिनय स्वाभाविक लगता है। धनेश साहू, काका, सेवक जैसे पॉपुलर कॉमेडियन अपनी छाप छोड़ते हैं। लेकिन असली सरप्राइज है लीड एक्ट्रेस आराधना उनकी मासूमियत, खूबसूरत अभिव्यक्ति और मधुर आवाज दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। दोनों लीड्स की केमिस्ट्री स्क्रीन पर कमाल की है।
कमियां
मसाला फिल्म होने के बावजूद यहां एक्शन सीक्वेंस का पूरी तरह अभाव है, जो इमोशंस और कॉमेडी के कॉकटेल को थोड़ा अधूरा छोड़ता है। एक गाने में आराधना का शादी का सपना देखना थोड़ा पुराना और अजीब लगता है – आज के युवा प्यार के साथ-साथ करियर को भी प्राथमिकता देते हैं, खासकर जब पिता कलेक्टर हो। कुछ प्लॉट पॉइंट्स जैसे स्वाभिमानी किरदार का गुटखा खाना असंगत लगते हैं। कुल मिलाकर कहानी बहुत सपाट और सीधी है – कोई बड़ा ट्विस्ट या पंच मिसिंग है, जो इसे और रोमांचक बना सकता था।
क्यों देखें?
अगर आप धनेश साहू, काका, कुबेर या सेवक के यूट्यूब वीडियोज के फैन हैं, तो यह फिल्म खास आपके लिए बनी है। छत्तीसगढ़ी के देसी, हास्यपूर्ण संवाद आपको बार-बार हंसाएंगे। मार्केट में पहले से ही धनेश-आराधना की जोड़ी की चर्चा है और पर्दे पर उनकी केमिस्ट्री वाकई लुभावनी है। आराधना को बेहद खूबसूरत और स्टाइलिश दिखाया गया है, जो फिल्म का प्लस पॉइंट है।
कुल मिलाकर, धनेश के आराधना एक फैमिली एंटरटेनर है।हल्की-फुल्की, मनोरंजक और छत्तीसगढ़ी संस्कृति से भरपूर। यूट्यूब स्टार्स के फैंस के लिए तो मस्ट वॉच!

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