- मन्दिर में विराजमान है इक्ष्वाकु वंश के महान राजा और जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभ की चतुर्थ काल की प्राचीन प्रतिमा
- औरंगजेब के अत्याचारों से बचाकर लाई गयी जैन धर्म के ग्याहरवें तीर्थंकर भगवान श्रेयांशनाथ जी की प्रतिमा है इस मन्दिर में विराजमान
बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन / बागपत के सिसाना गांव में स्थित हजारों साल प्राचीन भगवान चन्द्रप्रभ दिगम्बर जैन मन्दिर सिसाना द्वारा एक भव्य रथयात्रा का आयोजन किया गया। रथयात्रा में रथ में विराजमान जैन धर्म के ग्याहरवें तीर्थकर भगवान श्रेयांशनाथ जी की मूर्ति को ढ़ोल-नगाड़ों के साथ गांव के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण कराया गया । सर्वप्रथम दिगंबर जैन मंदिर में का मंत्रों द्वारा अभिषेक किया गया। उसके उपरांत मयंक जैन शास्त्री के निर्देशन में बोलिया लगाई गई। की बोली भारती जैन राजा जैन, चवर की बोली सुरेंद्र जैन खेकडा, चबर की बोली पंकज जैन, सारथी की बोली श्रेयांश जैन, बब्बू जैन परिवार को प्राप्त हुई। उसके उपरांत को रथ पर विराजमान किया गया। सिसाना गांव का भ्रमण करते हुए पांडुक शिला पर पहुंचकर भगवान का अभिषेक किया गया। पूजन के उपरांत पुनः ग्राम भ्रमण करते हुए की यात्रा मन्दिर जी में जाकर सम्पन्न हुई। रथ यात्रा में सुरेंद्र जैन, वीरेंद्र जैन, मयंक जैन शास्त्री, संजीव जैन, राजा जैन, विनीत जैन, पंकज जैन, तरूण जैन, विकास जैन, यश जैन, कविता जैन, मंजू जैन, अंजू जैन, सुषमा जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। गांव के एक बुजूर्ग ने बताया कि बागपत की पावन जमीन भगवान वाल्मीकि से लेकर भगवान परशुराम तक की कर्म भूमि रही है। इसी दिव्य शक्तियों से युक्त पवित्र-पावन भूमि पर सिसाना गांव में हजारों साल पुराना चमत्कारी दिगम्बर जैन मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर में इक्ष्वाकु वंश के महान राजा और जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभ जी की चतुर्थ काल की अत्यन्त प्राचीन अतिशयमयी प्रतिमा विराजमान है। इसी मंदिर में औरंगजेब के अत्याचारों से बचाकर लाई गयी जैन धर्म के ग्याहरवें तीर्थकर भगवान श्रेयांशनाथ जी की अतिशयकारी प्रतिमा भी विराजमान है। भगवान श्रेयांशनाथ जी की इस प्रतिमा के बारे में बताया जाता है कि यह पहले गुहाना-हरियाणा के नगर नामक गांव के प्रसिद्ध जैन मन्दिर में विराजमान थी। 1704 में औरंगजेब द्वारा उस जैन मन्दिर का विध्वंस करा दिया गया। स्थानीय निवासी और जैन धर्म के कट्टर अनुयायी के रूप में एक अलग पहचान बनाने वाले धामड़ परिवार के अमृतराय जैन ने मंदिर के विध्वंस होने से पहले ही उस मंदिर की मुख्य मूर्ति को छुपा दिया और औरंगजेब के सैनिकों से बचते-बचाते मूर्ति को लेकर बागपत के सिसाना गांव में आ गये और यहां पर पहले से ही स्थापित जैन मन्दिर में मूर्ति को विधिवत मंत्रोंचार द्वारा विराजमान कर दिया और परिवार सहित यही रहने लगे। जिस समय अमृतराय जैन सिसाना गांव में आये थे उस समय यहाँ पर सैंकड़ो जैन परिवार रहा करते थे। वर्तमान में सिर्फ अमृतराय जैन के वंशजों का सिर्फ एक जैन परिवार इस गांव में रहता है और इस अत्यन्त प्राचीन मन्दिर की देखभाल करता है।
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