महा-ख़ुलासा : धरमजयगढ़ SDOP की नाक के नीचे 'खाकी' का खेल? नूतन सिदार को बचाने के लिए रद्दी की टोकरी में डाला गया RTI कानून!...

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​रायगढ़/धरमजयगढ़ (विशेष रिपोर्ट): क्या रायगढ़ पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना है या रसूखदार 'साहबों' की चमचागिरी करना? यह सवाल इसलिए, क्योंकि जशपुर के सहायक जनसंपर्क अधिकारी (APRO) नूतन सिदार द्वारा सोशल मीडिया पर की गई बदनामी के मामले में पुलिस विभाग ने 'शर्म' को भी पीछे छोड़ दिया है। और इस पूरे खेल में अब सबसे बड़ा सवालिया निशान एसडीओपी (SDOP) धरमजयगढ़ की भूमिका और उनकी मॉनिटरिंग पर लग गया है।


​नूतन सिदार : वो 'साहब' जिनके लिए नियम हुए बौने - मामला बेहद संगीन है। राजपुर निवासी ऋषिकेश मिश्रा ने आरोप लगाया कि APRO नूतन सिदार ने अपराधी लिखकर बदनाम किया। एक जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी द्वारा ऐसी हरकत 'साइबर अपराध' और 'मानहानि' की श्रेणी में आती है। दिनांक 02.09.2025 को पुलिस अधीक्षक को शिकायत भेजी गई। कायदे से तो अब तक नूतन सिदार पर एफआईआर (FIR) होकर कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन कार्रवाई तो दूर, पुलिस शिकायत की एक कॉपी देने में भी पसीने छोड़ रही है। आखिर नूतन सिदार के सिर पर किसका हाथ है जो पुलिस उनके खिलाफ कलम चलाने से भी डर रही है?


​SDOP धरमजयगढ़ : कुंभकर्णीय नींद या मौन सहमति? - लैलूंगा थाना धरमजयगढ़ अनुविभाग के अंतर्गत आता है। सितंबर से अक्टूबर का महीना खत्म हो गया, लेकिन लैलूंगा थाने ने परिवादी को जानकारी नहीं दी।


सीधा सवाल SDOP महोदय से है :

* ​क्या आपको खबर नहीं थी कि आपके अधीनस्थ थाने में एक गंभीर शिकायत दबाई जा रही है?

* ​यदि खबर थी, तो आपने लैलूंगा थाना प्रभारी पर चाबुक क्यों नहीं चलाया?

* ​क्या यह माना जाए कि नूतन सिदार को बचाने के इस 'प्रोजेक्ट' में अनुविभागीय कार्यालय की भी मूक सहमति है?


​DSP ने खोला मोर्चा, अब SDOP की गर्दन फंसी : पुलिस विभाग की अंदरूनी कलह और नाकामी तब जगजाहिर हो गई जब 31.10.2025 को जन सूचना अधिकारी (DSP, रायगढ़) ने अपनी लाचारी जाहिर कर दी। उन्होंने साफ लिख दिया है कि लैलूंगा थाने ने जानकारी नहीं दी, इसलिए अब धारा 6(3) के तहत यह "सिरदर्द" प्रथम अपीलीय अधिकारी यानी SDOP धरमजयगढ़ को सौंपा जा रहा है। ​


DSP के पत्र ने SDOP धरमजयगढ़ को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है। पत्र में स्पष्ट चेतावनी है कि यदि 30 दिन के भीतर जानकारी नहीं मिली और विलंब हुआ, तो अधिनियम की धारा 5(4) के तहत हर्जाना और जिम्मेदारी स्वयं SDOP की होगी। यानी अब तक जो फाइल थाने में धूल खा रही थी, अब वह SDOP की टेबल पर बम बनकर टिक-टिक कर रही है।


​वर्दी की साख दांव पर: यह मामला सिर्फ एक RTI आवेदन का नहीं है, यह उस वीआईपी कल्चर का है जहाँ एक अधिकारी (नूतन सिदार) को बचाने के लिए पूरा सिस्टम (लैलूंगा पुलिस और पर्यवेक्षण अधिकारी) एक आम आदमी को फुटबॉल बना देता है। अब देखना यह है कि क्या SDOP धरमजयगढ़ इस नोटिस के बाद नींद से जागते हैं और नूतन सिदार की फाइल खोलते हैं, या फिर "भाई-भतीजावाद" की रस्म निभाते हुए मामले को ठंडे बस्ते में ही रहने देते हैं।


​जनता जवाब मांग रही है-कानून सबके लिए बराबर है या सिर्फ नूतन सिदार जैसे रसूखदारों के लिए अलग बीएनएस (BNS) छपी है?


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