पिता को दफनाने के लिए अदालत आना बेहद दुखद- सर्वोच्च न्यायालय

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नई दिल्ली। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त किया कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता क्यों है, और स्थिति को अत्यंत दुखद माना। कोर्ट ने यह भी कहा कि, शव को याचिकाकर्ता की निजी भूमि पर दफनाया जा सकता है। हालांकि, सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस सुझाव पर आपत्ति जताई। छत्तीसगढ़ के बस्तर के छिंदवाड़ा गांव में एक ईसाई पादरी को दफनाने को लेकर विवाद के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि शव को 15 दिनों से शवगृह में रखा गया है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पादरी को सम्मान के साथ दफनाया जाए।

बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने बीते बुधवार को मृतक पादरी के बेटे रमेश बघेल की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ईसाइयों के लिए वैकल्पिक दफन स्थल के बारे में विवरण देने को कहा है। पूरे मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शव को दफनाने में हो रही देरी पर चिंता जताई और दोनों पक्षों से मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का आग्रह किया।

रमेश बघेल ने छत्तीसगढ़ HC के फैसले को दी थी चुनौती

वहीं याचिकाकर्ता रमेश बघेल का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि यह नीति स्वदेशी या अनुसूचित जातियों से ईसाई धर्म में धर्मांतरित होने वालों के लिए अत्यधिक विभाजनकारी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इसका मतलब यह होगा कि हर आदिवासी दलित से कहा जाएगा कि, वे अपने रिश्तेदारों को अपने पैतृक गांवों में नहीं दफना सकते। रमेश बघेल ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।

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