वन नेशन-वन इलेक्शन : अब मोदी सरकार को किन नई चुनौतियों का करना पड़ेगा सामना?

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 नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को वन नेशन-वन इलेक्शन पहल के संबंध में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। अब ऐसी संभावना जताई जा रही है कि मोदी सरकार शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में संशोधन के लिए विधेयक पेश कर सकती है। समिति ने 2029 में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया है। हालांकि, इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की राह आसान नहीं हो सकती है, क्योंकि उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

* कोविंद समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करने के लिए संसद में विधेयक पेश करना होगा। यह केंद्र सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा है। हालाँकि, यह आश्वस्त करने वाली बात है कि अधिकांश संशोधनों के लिए राज्य विधानसभाओं की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होगी।

* वर्तमान में एनडीए को 543 सदस्यों वाली लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 119 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, किसी भी संवैधानिक संशोधन को पारित करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।

प्रस्ताव को लोकसभा में साधारण बहुमत के साथ ही सदन में मौजूद व मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलना जरूरी है।

* यदि संविधान संशोधन प्रस्ताव पर मतदान के दिन लोकसभा के सभी 543 सदस्य उपस्थित हों, तो केंद्र सरकार को 362 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी। विपक्षी गठबंधन के पास लोकसभा में 234 सांसद हैं।

* राज्यसभा के संदर्भ में, एनडीए के पास 113 सदस्य हैं, और उसे छह मनोनीत सदस्यों का भी समर्थन मिलने की उम्मीद है। इसके विपरीत, विपक्षी गठबंधन के पास ऊपरी सदन में 85 सदस्य हैं। यदि मतदान के दिन सभी सदस्य उपस्थित होते हैं, तो दो-तिहाई बहुमत के लिए 164 मतों की आवश्यकता होगी, जो दर्शाता है कि सदस्यों की यह संख्या आवश्यक है।

* छह राष्ट्रीय पार्टियों में से सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी और नेशनल पीपुल्स पार्टी ही एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में हैं। वहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समेत कुल 15 पार्टियों ने इस पहल का विरोध किया है।

* जिन पार्टियों ने कोविंद समिति के समक्ष एक साथ चुनाव का समर्थन किया था, लोकसभा में उनकी संख्या 271 है। वहीं विरोध करने वाले 15 दलों की संख्या लोकसभा में 205 है।

* भारतीय जनता पार्टी के पास लोकसभा में अकेले बहुमत नहीं है। इसलिए उसे इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों और विपक्षी दलों दोनों से बातचीत करनी पड़ सकती है। इसके अलावा, कुछ संवैधानिक संशोधनों के लिए राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता होगी। इसलिए, इस मामले पर आम सहमति बनाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

* मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र से संबंधित संशोधनों के लिए देश के आधे राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी की आवश्यकता होती है। केंद्र सरकार को इस प्रक्रिया में राज्यों को भी शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय निकाय चुनावों से संबंधित संशोधनों के लिए आधे से अधिक राज्यों की सहमति आवश्यक है।

* मौजूदा समय में भाजपा का एक दर्जन से अधिक राज्यों पर कब्जा है। मगर हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारंखड, बिहार और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणामों की भूमिका अहम होगी।

* कोविंद कमेटी ने संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन की सिफारिश की है। अनुच्छेद 83 लोकसभा और अनुच्छेद 172 राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को नियंत्रित करता है। इनमें संशोधन के बाद ही एक साथ चुनाव का रास्ता साफ होगा।

वन नेशन-वन इलेक्शन की अवधारणा पर आम सहमति बनाने का एक तरीका यह है कि सरकार संशोधन विधेयकों को संसदीय समिति को भेजे। इन समितियों में विपक्षी सदस्य भी शामिल हैं। समिति के भीतर चर्चा के बाद इस मामले पर आम सहमति बन सकती है।

* सरकार को देश भर में एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यापक विचार-विमर्श करने की आवश्यकता होगी, क्योंकि राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग वर्षों में होते हैं। नतीजतन, कुछ राज्यों में जल्दी चुनाव कराने की आवश्यकता हो सकती है जबकि अन्य में देरी हो सकती है।

* कोविंद समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक कार्यान्वयन समूह की स्थापना की जाएगी। साथ ही, विभिन्न मुद्दों पर देश भर में व्यापक चर्चा की जाएगी। वन नेशन-वन इलेक्शन पहल को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएंगे।

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