जीवित्पुत्रिका व्रत यानी कि जितिया व्रत का हिंदू धर्म में खास महत्व माना जाता है। इस व्रत को महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह व्रत बहुत ही कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। महिलाएं बिना अन्न जल ग्रहण किए इस व्रत को करती हैं और अपनी संतान के बेहतर स्वास्थ्य और सफलता की कामना करती हैं। इस साल यह व्रत महिलाएं 25 सितंबर दिन बुधवार को करेंगी। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करके भगवान जीमूतवाहन की विधिपूर्वक पूजा करती हैं। आइए आपको बताते हैं जितिया व्रत का महत्व, पूजाविधि, शुभ मुहूर्त और व्रत को रखने के लाभ।
जितिया व्रत की तिथि कब से कब तक
जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस बबार 24 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 38 मिनट पर लगा जाएगी। उसका समापन 25 सितंबर को दोपहर में 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। जितिया का व्रत रखने वाली माताएं 25 सितंबर को पूरे दिन और पूरी रात व्रत रखके अगले दिन यानी कि 26 सितंबर को व्रत का पारण करेंगी। इसका पारण सुबह 4 बजकर 35 मिनट से सुबह 5 बजकर 23 मिनट तक किया जाएगा।
जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत प्रमुख रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ हिस्सों में रखा जाता है। माताएं संतान के लिए निर्जला व्रत करके भगवान जीमूतवाहन की विधि विधान से पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी संतान के ऊपर से हर प्रकार का संकट टल जाता है। इस व्रत को महिलाओं को हर साल करना होता है और बीच में कभी छोड़ा नहीं जाता।
जितिया व्रत की पूजाविधि जीवित्पुत्रिका व्रत को करने के लिए महिलाएं सुबह ही स्नान करने के बाद व्रत करने का संकल्प लेती हैं और गोबर से लीपकर पूजास्थल को साफ कर देती हैं। उसके बाद महिलाएं एक वहां पर एक छोटा सा कच्चा तालाब बनाकर उसमें पाकड़ की डाल लगा देती हैं। तालाब में भगवान जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित करते हैं। इस प्रतिमा की धूप-दीप, अक्षत, रोली और फूलों से पूजा की जाती है। इस व्रत में गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। इन पर सिंदूर चढ़ाया जाता है और उसके बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनाकर पूजा को संपन्न किया जाता है।
Post a Comment